सीपी-रचित रेत
- अनचाहत की चाह, नहीं यह
- अनुताप – आह ! व्यर्थ सोचना, हुआ
- अपराध – अंतरतम में छिपे कृपण के
- आँधी – नीले, पीले, लाल, बैंगनी
- आवश्यकता थी क्या जीवन की-बढ़ो सिन्धु की प्रलय
- इस दुर्बल तान के मिटने पर
- उत्तरी पवन से – आज नींद से जाग उठे तुम
- उनकी एक प्रशंसात्मक स्थिति-जैसे पावस ऋतू की
- उनकी हँसी – इन्द्रासन पर ज्यों मुझको
- ओ सपनों के राजकुमार !- यों मारे-मारे फिरते तुम
- कवियों से – रत्न जडित पिंजरे में
- कामरूप है देश
- खिलखिल कर हँसती हो जब तुम
- चले गए वे दिन छिपने
- छलनामयी – प्रिय तुम कितनी छलनामय हो
- जब न रहूँगा मैं
- जितना प्यार तुम्हें करता मैं
- जीवन एक दीप ही तो है
- ठहरो मेरे वर्तमान-समां रहा प्रतिपल
- तुम इतनी सुन्दर हो
- तुम्हें देखते ही मन में सिहरन-सी
- दान – सीखी क्या निर्झर से
- दुखांत नाटक का नायक-पृथ्वी रंगमंच है
- देख किसीको मन में
- देखो, भूल गयी न मुझे तुम
- नारंगी की नन्ही-नन्ही कलियों सा
- पछतावा – जैसे भ्रमरावली पैठकर
- परवशता – अब स्वाभाव हो गाया रात दिन
- पावस-प्रिया – रिमझिम-रिमझिम बरस रही है
- प्रेम – कोई हँसे प्रेम को मानव की
- बातचीत – मैं न कभी सुनता
- बासी होता प्रेम कहीं-जब मैं अंतिम आह खींच
- बेढब बनारसी की हीरक जयन्ती के अवसर पर-काशी के कबीर
- मृत्यु-सुन्दर है वह मृत्यु
- मिल न सका क्यों होकर एक
- मेघदूत के यक्ष से-जिनकी बूँदों कि अजस्र
- मेरी कविता – जिस निगूढ़ शुष्मा की
- मेरे गीत और प्रकृति – मेरे गीतों में क्यों आता
- मेरे जीवन का इतिहास – उस मुखड़े पर लिखा हुआ है
- मैं कब यहाँ अकेला था – मुझे नहीं इसका दुःख
- मैंने जितना प्यार किया है
- रहस्यमयी – यदि मैं पाता देख
- राजस्थान के सैकत टीलों में- यह कठोर शिशुपालन
- लजालू प्रेमी – शीघ्रे लजालू प्रेमी कैसे
- वह रजनी – सजनी! वह रजनी भी
- विकलता – आह विकलते
- विरही – सोया-सोया देख रहा मैं
- विरहिणी – देख रहा मैं दूर चाँदनी के
- वे आँखें – जादू है कुछ पर्दे में
- शाश्वत सौन्दर्य – एक फूल के कुम्हलाते ही
- शिशिर-बाला – अर्धनग्न-तनु, मुख पर झीना
- सपना – सपने में देखा है मैंने
- स्वप्न और यथार्थ- तुमसे पाकर भीख स्नेह की
- साधारण बातें – मैं घंटों सोचा करता हूँ
- सुख-दुःख – जीवन सुखमय कर सकती है
- एक गाँव में रहते – सीपी रचित रेत
- सुन्दरता और कविता