बलि-निर्वास_Bali Nirvas
पात्र परिचय
प्रथम अंक प्रथम दृश्य
प्रथम अंक द्वितीय दृश्य
प्रथम अंक तृतीय दृश्य
तृतीय अंक
चतुर्थ अंक
पंचम अंक
बलि-निर्वास के गीत
- प्रथम अंक-यदि स्वर्ग कहीं है त्रिभुवन में
- प्रथम अंक-जीवन-संध्या में आज, पथिक तुम थके
- तृतीय अंक-जीवन वसंत सा हुआ
- चतुर्थ अंक-मधुप ! तुम भूल गए रस-केलि
- चतुर्थ अंक-मधुप तुम कबसे हुए विरागी
- चतुर्थ अंक-मधुकर यह मधुवन क्यों भूले
- चतुर्थ अंक-मधुप तुम भूले प्रीति पुरातन
- चतुर्थ अंक-मना लूँ मन को तो, सजनी !
- चतुर्थ अंक-मधुकर तुम हो बड़े प्रवीण
- चतुर्थ अंक-सखी री! समय-समय की बात
- चतुर्थ अंक-अवधि में क्या हो, किसे पता !
- चतुर्थ अंक-सखी री ! इतने बैरी तेरे
- चतुर्थ अंक-अमरे ! तुझसे अच्छी काशी
- चतुर्थ अंक-सखी री, ! बीत गये दिन कितने
- चतुर्थ अंक-विरह की यह तो पीर नहीं
- चतुर्थ अंक-मैंने जो व्रत-नेम किये
- चतुर्थ अंक-फड़कती क्यों यह दायीं आँख
- चतुर्थ अंक-नयन के शर-संधान किये
• “आप जन्मजात कवि हैं। ’बलि-निर्वास’ की प्रथम पंक्तित ही ’यदि स्वर्ग कहीं है तो वह मेरे ही उर में है’ आपकी अद्भुित प्रतिभा का परिचय देती है। तथा ’पद-विन्यासमात्रेण’ की उक्तिह को चरितार्थ करती है।”
-मैथिलीशरण गुप्त
• “आपका ’बलि-निर्वास’ खूब है। मैंने और पंतजी ने उसे अत्यन्त चाव से पढ़ा है। हम दोनों आपके परम प्रशंसक हैं।”
-हरिवंश राय बच्चन