kavita
विदा
हाय, भावुकता कभी यों शूल होगी
कया पता था साध मन की भूल होगी
स्वप्न भी अब आ न पाये लोचनों में
अब न आये याद भी सूने क्षणों में
भूल जाओ भूल का इतिहास, प्रेयसि!
भूल जाओ स्वप्न का उल्लास, प्रेयसि!
अब-वियोगी प्राण में तूफान लाने
कल्पना में भी न आना पास, प्रेयसि!
मैं न रोऊँगा, सरित उद्दाम झरता ही रहेगा
मैं न लूँगा गीत, बादल आह भरता ही रहेगा
आँखों को विदा दो चित्र मेरी तूलिका के
इंद्र-धनु से तो किसीका पट सँवरता ही रहेगा
आज मधुऋतु क्यों विजन में ओस के आँसू बहाये !
आज कोयल कुंज में क्यों प्रिय-विरह के गीत गाये !
ज्यों मिलन चिर-मूक था, त्यों ही विदा भी मूक होगी
इस तरह रोऊँ, न तुम देखो न जग ही जान पाये
1940