tujhe paya apne ko kho kar
गीत जा रहे गगन के पार
धन्य हुआ मैं इनमें से भाये तुमको दो-चार
कुछ कानों पर ही मँडराये
कुछ अधरों का तट छू पाये
पर कुछ तुमको ऐसे भाये
चित में लिए उतार
उमगे बहुत तुम्हारे बनके
अब ये प्यासे हरि-दर्शन के
खोल द्वार पर द्वार गगन के
उड़ते पंख पसार
दें, प्रभु! बस यह वर, मैं जाकर
इन्हें मना लाऊँ फिर भू पर
फिर नव राग, नये सुर में भर
दूँ तुमको उपहार
गीत जा रहे गगन के पार
धन्य हुआ मैं इनमें से भाये तुमको दो-चार
Sept 99