tujhe paya apne ko kho kar
तेरी वंशी लेकर कर में
कुछ अटपटे गीत गाये हैं मैंने अपने स्वर में
इन गीतों में कला नहीं है
तान कहीं है, ताल कहीं है
पर तेरी छवि झलक रही है
इनके हर अक्षर में
काल भले ही नयन तरेरे
जड़ता हो तन-मन को घेरे
वंशी के जादू से तेरे
मिट न सकूँगा पर मैं
जब बुझने पर आये बाती
यद्यपि सौंप दूँगा यह थाती
सदा रहेगी मुझे जिलाती
इसकी धुन घर-घर में
तेरी वंशी लेकर कर में
कुछ अटपटे गीत गाये हैं मैंने अपने स्वर में