tujhe paya apne ko kho kar
बाग़ के सभी फूल कुम्हलाये
कितने क्या-क्या रंगों में थे ये प्रभात में आये।
कुछ मुख-मलिन झुके डालों पर
कुछ लेटे पत्तों में जर्जर
कुछ हैं किसी भाँति लुक-छिपकर
बस अस्तित्व बचाये
मैं भी एक फूल-सा इनमें
कितना चमक रहा था दिन में!
ज्ञात न, अब दिखता हूँ किनमें
कब तू तोड़ गिराये
जो ओझल हो रहे नयन से
कैसे उन्हें भुला दूँ मन से!
कैसे कोई इस उपवन से
हार गूँथकर लाये!
बाग़ के सभी फूल कुम्हलाये
कितने क्या-क्या रंगों में थे ये प्रभात में आये!
मार्च 2000