sita vanvaas
शोक का सागर ज्यों लहराया
युगल कुमारों ने जब फिर वन-गमन-प्रसंग सुनाया
सुनकर वृद्ध पिता की वाणी
कातर, दीन, अश्रु में सानी
‘कुल में दाग लगा मत रानी
यह क्या तुझको भाया!
‘राज भरत को ही दे दूँगा
पर मैं राम बिना न जिऊँगा
बोले प्रभु–‘मैं सह न सहूँगा
शेष रहे अनगाया!
‘अब आगे की कथा सुनायें
केवट के विनोद दुहरायें
बंधु भरत से भेंट करायें
दुख में सुख हो छाया’
शोक का सागर ज्यों लहराया
युगल कुमारों ने जब फिर वन-गमन-प्रसंग सुनाया