sita vanvaas
गाते रामायण मृदु स्वर में
जब प्रभु ने यह सुना, पधारे दो मुनि-शिष्य नगर में
मन में गयी अजान पुलक भर
कहा– ‘उन्हें ले आओ सादर
सुनें अयोध्या के नारी-नर
कथा राज-परिसर में!
पर क्षण ही पर पड़ी दिखाई
सीता की मुखछवि मुरझायी
अंतिम विदा याद हो आयी
हूक उठी अंतर में
कहा जिसे न कभी जग-सम्मुख
छिप न सका मारुति से वह दुख
बोले– ‘लंका-जय का क्या सुख
माँ जब रही न घर में!’
गाते रामायण मृदु स्वर में
जब प्रभु ने यह सुना, पधारे दो मुनि शिष्य नगर में