sita vanvaas

अवध में छाया विस्मय भारी
‘क्या सचमुच दिग्विजयी सेना दो शिशुओं से हारी!

‘यदि शत्रुघ्न, भरत, लक्ष्मण भी
टिक न सके रण में दो क्षण भी
क्‍या कहते होंगे मुनिगण भी

कीर्ति देख वह न्यारी!

‘समझ भले आश्रम ऋषियों का
मन भी रक्खा हो बच्चों का
पर जब केतु गया था रोका

लड़ी न सेना सारी!

प्रभु भी सुना न कुछ कर पाये
वय, वीरता देख सकुचाये
अश्व फिराकर भी हों लाये

पर क्‍या विजय हमारी !’

अवध में छाया विस्मय भारी
‘क्या सचमुच दिग्विजयी सेना दो शिशुओं से हारी !’