sita vanvaas
उठकर बाल्मीकि तब बोले–
‘पुत्री! मैं निज रामायण के शेष पृष्ठ हूँ खोले
‘जब तू फिर से वन में आयी
मैंने वह दुख-कथा न गायी
जब भी दृढ़ हो कलम उठायी
लिख न सका, कर डोले
‘क्षेपक, यहाँ काल जो बीता
मेरी राम-कथा में, सीता!
राम-वाम-दिशि, सदा-पुनीता
तू चिर-शोभित हो ले
“साक्षी हूँ, पल भी पति का चित
हुआ न, बेटी! तुझमें शंकित
नृप-आदर्श दिया जग के हित
उठ, निज अश्रु सँजो ले’,
उठकर बाल्मीकि तब बोले—
‘पुत्री! मैं निज रामायण के शेष पृष्ठ हूँ खोले’