sita vanvaas
‘जो हैं जन्म-जन्म के स्वामी
मुझे न कुछ कहना है उनसे, वे हैं अंतर्यामी
बहुएँ चिड़ियों-सी आ जुड़तीं
मिल-मिलकर हैं सदा बिछुड़तीं
कहूँ उन्हें क्या, जो झट उड़तीं
निज पति की अनुगामी!
‘पर न सास का मन रख पायी
यह पीड़ा जाती न भुलायी
यदि वन-हित करती न ढिठाई
क्यों छलता रिपु कामी!
‘धर्म यही, गुरु-वचन निभाऊँ
पति सँग लौट अवध को जाऊँ
किंतु न क्या निज मान गँवाऊँ
भरकर इसकी हामी!’
‘जो हैं जन्म-जन्म के स्वामी
मुझे न कुछ कहना है उनसे, वे हैं अंतर्यामी