hum to gaa kar mukt huye
पल में धोकर साफ कर सकूँ, ऐसा हृदय दिया होता यदि!
मैं क्यों ऐसे व्याकुल होता!
मैं क्यों ऐसे सुधबुध खोता!
मैं क्यों यों घुट-घुटकर रोता!
मुझको भी निःस्पंद मील के पत्थर सदृश किया होता यदि!
आँसू सनी बात वह आधी
मैंने कभी गाँठ क्यों बाँधी!
आज जिस तरह चुप्पी साधी
काश! उस तरह उस दिन भी उसने मुँह फेर लिया होता यदि!
क्यों सच, जो था सपना, समझा
क्यों पर को था अपना समझा
सब थीं आत्म-वंचना, समझा
क्या होता, रह प्रेम बिना ही, जीवन यहाँ जिया होता यदि!
पल में धोकर साफ कर सकूँ, ऐसा हृदय दिया होता यदि!
जुलाई 86