kasturi kundal base
सब कुछ गा चुकने के बाद भी
एक गीत अभी अनगाया है,
कुहरे में छिपे कंकाल को
मेरा मन देख नहीं पाया है।
हो सकता है उसके दाँत चमक रहे हों,
उसके मुख पर स्मिति-रेखायें बनी हों,
हो सकता है उसकी मुट्टियाँ भिची हों
और भौहें तनी हों,
हो सकता है किसी चिर-परिचित बंधु-सा
वह बढ़कर मुझे गले से लगा ले,
हो सकता है भूखे बाघ-सा झपटकर
मुझे अपने जबड़ों में दबा ले।
मेरे समस्त अनुभवों की रत्नराशि
उसकी एक भंगिमा पर तुल जायगी
जीवन की यह कसकर बाँधी हुई गाँठ
उसके छूते ही खुल जायगी।