mere geet tumhara swar ho
मुझे तो है यह दृढ़ विश्वास
मुझे क्षमा कर देंगे स्वामी जब पहुँचूँगा पास
छिपी न उनसे मति क्षण-क्षण की
कब मैंने क्या वृत्ति ग्रहण की
कुछ तो सुध होगी निज प्रण की
देख शरण-जन-त्रास!
यद्यपि मैंने उन्हें भुलाया
गँवा दिया जो कुछ था पाया
हूँ आश्वस्त, शरण जो आया
हुआ न कभी निराश
वे मेरा आकुल क्रंदन सुन
रह न सकेंगे निस्पृह, निर्गुण
क्या, यदि जगहित कर्मजाल बुन
आप लिया संन्यास!
मुझे तो है यह दृढ़ विश्वास
मुझे क्षमा कर देंगे स्वामी जब पहुँचूँगा पास