jyon ki tyon dhar deeni chadariya
सांत्वना
काल के बाण क्या मुझे ही लगे!
हमसफर सब बुझे-बुझे ही लगे
मन रे! सब एक नाव पर हैं सवार
क्यों बुढ़ापा बुरा तुझे ही लगे!
मन! तू अच्छा बुरा न छाँटेगा
प्यार टुकड़ों में नहीं बाँटेगा
जीवन-शिशु को तो वह जगतपिता
करेगा प्यार कभी डाँटेगा
देन देकर भी मुझे नरतन की
सुधि जो लेता रहा क्षण-क्षण की
कैसे अबकी ही भुला देगा वह
रास छोड़ेगा मेरे जीवन की!