boonde jo moti ban gayee
ओ उर्वशी! क्या पुरुरवा का विलाप सुनकर
तुम्हारे हृदय में भी कोई पीड़ा हुई थी,
या तुम्हारे लिए वह भी
केवल प्रेम की एक कुतूहलमयी क्रीड़ा हुई थी?
पता नहीं, कितनी बार, कितने पुरुरवाओं के साथ
तुम ऐसे ही सव्रीड़ा हुई थी !’
ओ उर्वशी! क्या पुरुरवा का विलाप सुनकर
तुम्हारे हृदय में भी कोई पीड़ा हुई थी,
या तुम्हारे लिए वह भी
केवल प्रेम की एक कुतूहलमयी क्रीड़ा हुई थी?
पता नहीं, कितनी बार, कितने पुरुरवाओं के साथ
तुम ऐसे ही सव्रीड़ा हुई थी !’