boonde jo moti ban gayee
कागज की लिखावट
मैंने आँसुओं से धोकर बहा दी है,
और टुकड़े-टुकड़े करके
चिट्ठी हवा में उड़ा दी है।
कौन जाने, मेरा प्रेम
इसी प्रकार तुम तक पहुँच पाये !
जो आज तक अनकहा रहा है,
शायद ऐसे ही कह दिया जाये;
जब मन में भावना का ज्वार आता है
तो बिना पत्र के ही संदेश पहुँच जाता है।
शब्द तो केवल बीच की दीवारें गढ़ता है,
हृदय, हृदय की भाषा, बिना लिखे ही पढ़ता है।