boonde jo moti ban gayee
हर विषपान के बाद मैं जीवित कैसे रह जाता हूँ!
ओ देवयानी ! तुम्हारे अधरों में संजीवनी है,
शुक्राचार्य का गुण तो व्यर्थ ही गाता हूँ।
हर विषपान के बाद मैं जीवित कैसे रह जाता हूँ!
ओ देवयानी ! तुम्हारे अधरों में संजीवनी है,
शुक्राचार्य का गुण तो व्यर्थ ही गाता हूँ।