vyakti ban kar aa
अभिव्यक्ति ने तो आकाश को छुआ है
किन्तु जीवन धरती से चिपटा हुआ है;
कितना अंतर है मेरे दोनों रूपों में,
एक राजहंस तो दूसरा कछुआ है।
अभिव्यक्ति का ही सम्मान चाहिए
मुझे तो बस क्षमादान चाहिए
कि मैं उसपर खरा नहीं उतर सका,
जो कहता रहा उसे आप ही नहीं कर सका।