vyakti ban kar aa
मेरे बच्चे!
यों तो मैं कब का कार्यमुक्त हो गया हूँ,
अनंत की गुफाओं में जाकर सो गया हूँ,
फिर भी कभी-कभी तेरा क्रंदन मुझे व्याकुल कर देता है,
मन को करुणा से भर देता है।
माना कि हर बात के लिए मैंने नियम बना डाला है,
हर कार्य का कुछ-न-कुछ कारण निकाला है,
हर जगह कोई-न-कोई नियंत्रण करनेवाला है,
मेरी सक्रियता व्यवस्था के अधीन है,
और मेरी निष्क्रियता स्वतंत्र होकर भी शक्तिहीन है,
फिर भी कभी-कभी जब तू जिद में आकर
मुझे अनवरत पुकारने लगता है,
जीवन का दाँव हारने लगता है,
और अपना सिर बार-बार पत्थरों पर मारने लगता है,
तो फिर मुझसे रहा नहीं जाता है,
तेरा दुख और सहा नहीं जाता है,
मैं अपने असीम को ससीम कर लेता हूँ
और जिस रूप में तू मुझे बुलाता है,
वही रूप धर लेता हूँ।