chandni
आज तो पूनो मचल पड़ी
अलकों में मुक्ताहल भर के
भाल बीच शशि-बिंदी धर के
हँसी सिँगार सोलहों करके
नभ पर खड़ी-खड़ी
चन्दन-चर्चित अंग सुहावन
झिलमिल स्वर्णांचल मनभावन
चंपक वर्ण कपोल लुभावन
आँखें बड़ी-बड़ी
फूलों ने की हँसी-ठिठोली
किसे रिझाने? चकई बोली
वह न लाज से हिली न डोली
भू में गड़ी-गड़ी
आज तो पूनो मचल पड़ी
1941