anbindhe moti

खड़ा मैं तट पर आज अकेला
देख रहा संमुख नयनों के मौन हुआ जो मेला

टूटी, नौका, पाल फटे हैं, मीत नहीं अलबेला
कैसे इस सुकुमार हृदय ने भार विरह का झेला !
बालक-सा हीरे को पाकर पल भर किलका, खेला,

बहला कौन ले गया कर में दे मिट्टी के ढेला !
थपकी देकर आज सुलाने आयी संध्या-वेला
मिट जाये अब मधुर मिलन की स्मृति, हो दूर झमेला
खड़ा मैं तट पर आज अकेला

1942