anbindhe moti
मुझे बता दो मेरा परिचय
भुला न पाता मैं अपने को मन के मादक उच्छावासों में
साथ न दे पाता हूँ पल भी मित्रों के पुलकित हासों में
हर्ष-रूदन सब में अभाव-सा एक विकल करता प्राणों को
शांति न मिलती मुझे धर्म या ईश्वर के भी विश्वासों में
लगता इनसे भिन्न दूसरा ही कुछ है जीवन का आशय
संज्ञाहत-सा बैठा हूँ मैं किससे क्या पूछूँ, बतलाऊँ!
इन नश्वर फूलों से कैसे अपना अमर सुहाग सजाऊँ!
तृप्ति न दे पायेगा मुझको यह नन्हा-सा प्याला, साकी !
एक घूँट में सागर पी लूँ, बड़वानल-सी प्यास बुझाऊँ
जीवन या कि मृत्यु मानव की, एक साँस में कर लूँ निर्णय
सिर पर शिला-खंड-सा अंबर, नीला, पीला, रंग-रँगीला
पाँवों में है ठोस धरा, करती न कभी जो बंधन ढीला
रुद्ध क्षितिज की क्षीण परिधि से मेरा वहिर्विकास रुका है,
मुझे बाँधती है मुझमें ही, किस लीलामय की यह लीला ?
पग-पग पर इतने कौतूहल, इतनी उलझन, इतना विस्मय
तृण-सी चीर अनंत दिशाएँ, लाँघ श्रृंग, गिरि, सरिता, सागर,
रवि-शशि के पद-चिह्न बनाता, काल-वृहत अंबर के पट पर
धरती की छाती में ठोकर मार प्रलय-झंझा-गर्जन-सा,
मैं उन्मत्त चला जाऊँगा तोड़-फोड़ यह मिट्टी का घर,
महाशून्य. के अंधकूप में कूद अशनि-ज्वाला-सा निर्भय
मुझे बता दो मेरा परिचय
1940