anbindhe moti

मेघों में तारे सोये हैं

कोई छिप कर मुस्काता है
कोई उझक झाँक जाता है
किन्तु एक ही तम की दुनियां में ये सब-के-सब खोये हैं

ज्यों ही समय दुखों का आया
लहरों ने भी इन्हें भुलाया
जिनके साथ अँधेरी लंबी रातों में मिलकर रोये है

खो कर स्वर्ण-विभा का सपना
पथिक दूँढते है पथ अपना
पूछ रही है हवा व्योम से, ‘मेरे दीप कहाँ जोये है’
“मेघों में तारे सोये है

1940