anbindhe moti
रे, यह तो पतझड़ की वेला
हो चुके प्रणय-वंदी-गण चुप
हैं आज नहीं वे रस-लोलुप
झड़ गयी गंध, उड़ गये मधुप
जिनसे तू जीवन भर खेला
अब लगे मधुप दल क्यों आने !
वे सुंदरता के दीवाने
अब आये भी तो क्या पाने !
वह क्षणिक रूप का था मेला
जो आये मधु के याचक बन
अब उनकी करुणा पर जीवन !
तू सहता कैसे हृदय-सुमन
अपने मधुपों की अवहेलना !
रे, यह तो पतझड़ की वेला
1941