anbindhe moti

वर्षा सुंदरी

सतरंगे पटवाली
चपल चमकती भौहें जिसकी आँखें काली-काली

श्याम सलोने मुख पर झलमल मोती का-सा पानी
अंग-अंग में लहराती है रस की भरी जवानी

मद के भार झुकी जाती हो ज्यों फूलों की डाली

पवन-पीठ पर चली पालकी, पर्वत-पर्वत डेरा
अभी न आयी पी की नगरी, बटमारों ने घेरा

मुक्ता-मंडित कवरी पल में तार-तार कर डाली

सतरंगे पटवाली
चपल चमंकती भौंहें जिसकी आँखें काली-काली

2000