ravindranath:Hindi ke darpan me
याबार दिन
याबार दिने एई कथाटि बोले जेनो जाई-
या देखेछि, या पेयेछि, तूलना तार नाई ।
एई ज्योति समूद्र माझे
ये शतदल पद्म राजे
तारि मधू पान करेछि, धन्य आमि ताई
याबार दिने एई कथाटि जानिये जेनो जाई ।।
विश्वरुपेर खेलाघरे कतई गेलेम खेले,
अपरूपके देखे गेलेम दूटी नयन मेले ।
परश याँरे जाए ना करा
सकल देहे दिलेन धरा,
एईखाने शेष करेन यदि शेष करे दिन ताई-
याबार बेला एई कथाटि जानिये जेनो जाई
जाने के दिन
जाने के दिन, विदा लूँगा मैं जग से यही कहकर
तुलना नहीं उसकी जो देखा और पाया मैंने दो दिन इस बाग में ठहर
शत-शत रूपों में झिलमिला
कमल जो इस ज्योति-महासिंधु में खिला
धन्य हुआ हूँ मैं नित पीता हुआ, उसकी पँखुरियों से मधु जी भर
विश्व खेलाघर में बहुत खेला
देखा है अरूप को भी दृग की पुतलियों में ला
जो था अगम, अनदिखा, अजाना
उसको भी शब्दों में बखाना
हूँ मैं आप्तकाम, आत्मतुष्ट आज, शेष भी हो मेरी जीवनयात्रा यहीं पर
जाने के दिन बिदा लूँगा मैं जग से यही कहकर
तुलना नहीं उसकी जो देखा और पाया मैंने दो दिन इस बाग में ठहर