har subah ek taza gulab
प्यार किस तरह उनको जतलायें !
दिल को हम चीर कर भी दिखलायें !
बस कि परदे से लगके बैठे हैं
कभी दम भर तो सामने आयें
वे भी बेचैन हों हमारे लिये
और हम इसको देख भी पायें
है कोई इंतज़ार में हरदम
हम लिपटने की ताब तो लायें
अब तो बगिया से जा रहे हैं गुलाब
जिनको मिलना हो आके मिल जायें