kuchh aur gulab
आँखों-आँखों मुस्कुराना ख़ूब है !
प्यार यह हमसे छिपाना ख़ूब है !
एक ठोकर और प्याला चूर-चूर
लौट जाने का बहाना ख़ूब है !
बेकहे आये, चले भी बेकहे
ख़ूब था आना, ये जाना ख़ूब है !
हर क़दम पर, हर घड़ी हो साथ-साथ
सामने फिर भी न आना, ख़ूब है !
भूल है अपना समझ लेना, गुलाब!
रंग उन आँखों में, माना, ख़ूब है !