kuchh aur gulab
कुछ तो आगे इस गली के मोड़ पर आने को है
डर न, ऐ दिल ! आज कोई हमसफ़र आने को है
फिर उतरने लग गयीं यादों की वे परछाइयाँ
दिल का सोया दर्द जैसे फिर उभर आने को है
फ़िक्र क्या तुझको, कहाँ तक जायगा यह कारवाँ !
बाँध ले बिस्तर, मुसाफिर ! तेरा घर आने को है
यह तो बतलाओ कि पहचानेंगे कैसे हम तुम्हें
लौट कर यह कारवाँ फिर भी अगर आने को है !
ये नज़ारे फिर कहाँ ! यह साँझ, ये रंगीनियाँ !
नाव, यह माना कि फिर इस घाट पर आने को है
जब निगाहें मोड़कर जाते हैं दुनिया से गुलाब
कोई लाया है ख़बर— ‘वह बेख़बर आने को है’