kuchh aur gulab
तुम्हें प्यार करने को जी चाहता है
फिर एक आह भरने को जी चाहता है
बड़े बेरहम हो, बड़े बेवफ़ा हो
करें क्या जो मरने को जी चाहता है !
कहें क्या तुम्हें ! ज़िंदगी देनेवाले !
कि जी से गुज़रने को जी चाहता है
मना है जिधर ये निगाहें उठाना
उधर पाँव धरने को जी चाहता है
खिले हैं गुलाब आज होंठों पे उनके
कोई जुर्म करने को जी चाहता है