kuchh aur gulab
यह सितारों से भरी रात हमारी कब थी !
आपके प्यार की सौग़ात हमारी कब थी !
कोई छींटा कभी उड़ता हुआ आया भी तो क्या !
झमझमाती हुई बरसात हमारी कब थी !
था वही बाग़, वही फूल, वही तुम थे, मगर
फिर बहारों से मुलाक़ात हमारी कब थी !
आख़िरी वक़्त निगाहों में खिल उठे थे गुलाब
उनकी महफ़िल में चली बात हमारी कब थी !