sau gulab khile
खिली गुलाब की दुनिया तो है सभी के लिये
मगर गुलाब है खिलता किसी-किसीके लिये
न मौत के लिये आये न ज़िंदगी के लिये
तड़पने आये हैं दुनिया में दो घड़ी के लिये
अदायें तेरी जो, ऐ ज़िंदगी ! सँभाल सके
कलेजा चाहिए पत्थर का, आदमी के लिये
ये हमने माना कि जीवन है एक अँधेरी रात
कभी तो वे भी चले आयें रोशनी के लिये
करेगा कौन उन्हें प्यार अब हमारी तरह !
न चाँद फिर कभी निकलेगा चाँदनी के लिये
जहाँ भी होती है चर्चा तेरी रंगीनी की
हमारा नाम भी लेते हैं सादगी के लिये