bikhare phool
बीत गए ग्यारह मास, पिया! अब फागुन न बीते
जेठ भी बीता, आसाढ़ भी बीता, पूस के गए हैं दिन ख़ास
पिया! अब फागुन न बीते
फूले कचनार, पलाश भी फूले
रंग गुलाब के आँखों में झूले
महुआ की महक उदास
पिया! अब फागुन न बीते
चली पुरवैया अबीर उड़ाती
बाग़ में कोयल है धूम मचाती
सरसों ने रच दिया रास
पिया! अब फागुन न बीते
अबकी मिलोगे तो जाने न दूँगी
प्यार के रंग में तन-मन रँगूँगी
कह दूँगी कानों के पास–
पिया! अब फागुन न बीते
बीत गए ग्यारह मास, पिया! अब फागुन न बीते
जेठ भी बीता, आसाढ़ भी बीता, पूस के गए हैं दिन ख़ास
पिया! अब फागुन न बीते