ahalya
मुड़ देखा मुनि ने ज्यों पूनो की चंद्र-किरण
मानस लहरों पर करती आयी मधु-वर्षण
रजनी की प्रथम तारिका ज्यों आलोक-चरण
उतरी नीले नभ के गवाक्ष पर से निःस्वन
या सिद्धि स्वयं अनुगत थी
ज्योतित लपटों-सी ग्रीवा, उड़ते चिकुर-जाल
तिर्यक् मुख, नत आकर्ण नयन, भौंहें अराल
गोरे अंगों पर हँसता ज्यों मधु-ऋतु-रसाल
लावण्यमययी शोभा पहने तारुण्य-माल
तप-सम्मुख भक्ति-प्रणत थी