ahalya
सुरपति यह जिसने पति-अनुकृति धर ली अनूप
पाटल-विकीर्ण पथ नहीं, अतल चिर-अंध-कूप’
कानों से लग बोले दृग-मधुकर, दंश-रूप
आया कुसुमित शर ले अरूप वह बाल-भूप
बह चली वायु अनुकूला
सुगठित भुज-पट्ट, कपाट-वक्ष, हिम-गौर स्कंध
तनु तरुण भानु-सा अरुण, स्रस्त-तूणीर-बंध
दृढ जटा-मुकुट-शिर, कटि-तट मुनि-पट धरे, अंध
प्रेमी के छल पर सलज, विहँस, उन्मद, सगंध
उर-सुमन प्रिया का फूला