ahalya

कुछ क्षण रुक बोले मुनि फिर नृप का देख चाव
‘राजन! मैं आया आज लिए कुछ स्वार्थ-भाव
रक्षण ऋषियों का यह तो क्षत्रिय का स्वभाव
देखते तुम्हारे यज्ञ-ध्वंस हों महाराव
हिंसक असुरों के द्वारा!

‘हर लें बलात मुनि-कन्यायें निशिचर कामी!
वेद-ध्वनि-वर्जित आश्रम हो वनचर-गामी!
गिरि-गुहा ढूँढ़ते फिरें संत-जन गुमनामी!
जग अर्थ-काम को भजे, धर्म की हो खामी!
सूखे चिंतन की धारा!’