ahalya
स्तंभित-सी परिषद, नृप-गुरु सोये-से जागे
ऋषिवर, आसन लें पहले, फिर जो कुछ माँगें
बढ़ की आरती नृपति ने बैठाकर आगे
निज-निज आसन शोभित दुश्चिंता में टाँगे
पंक्ति में सभासद सारे
थे राम-लक्ष्मण-भरत-शत्रुधघनय एक ओर
नृप देख रहे थे अपलक ज्यों शशि को चकोर
बाहर अपार जन-सागंर-सा लेता हिलोर
उत्कंठा-चिंतातुर मुनि का सुन व्रत कठोर
जाने क्या जीतें, होरें!