ahalya

यवनिका अंध भावों की सहसा गयी उलट
तन कँपने लगा छाँह-सा तप के तपनि-निकट
स्मर-दग्धा रति-सी, शोभाहीन, निरीह निपट
देखा अभागिनी ने यौवन-छवि का मरघट,
निज जीवन पापोन्मुख को

शीतल हो गये नयन, प्रभु-छवि निर्मल विलोक
छवि-धाम, राम, निष्काम, विगत-भय-राग-शोक
पावन स्मिति से आलोकित पल में हृदय-लोक
हत-बुद्धि अहल्या, साश्रु गिरी प्रभु-पंथ रोक
ढँकती कलंकमय मुख को