ahalya
दृग से झर-झर आँसू बरसे, रूँध गया गला
कह सकी न आगे कुछ भी भावाकुल अबला
बोले प्रभु करुणा-सजल, ‘अहल्ये! न रो, भला
तू पावन सदा पूर्णिमा की ज्यों चन्द्र-कला,
अब और नहीं तपना है
वह क्षणिक हृदय की दुर्बलता, वह पाप-भार
कल का सारा जीवन जैसे बीती बयार
वह देख, आ रहे गौतम, पहला लिए प्यार
अब से नूतन जीवन, नव संसृति में सँवार
जो बीत गया सपना है