anbindhe moti
इसी सुविस्तृत जग के अंदर
नीरव नयन-पंखुरियाँ मींचे
इसी नील अंबर के नीचे
किसी कक्ष में सोयी होगी, प्रेयसि ! तुम भी श्रम से थककर
होगा यही चंद्रमा सुदर
यही सप्त ऋषि होंगे सिर पर
इसी तिमिर में दीप-शिखा सा हँसता होगा कांत कलेवर
पोंछ यही निस्तब्ध समीरण
मेरे अश्रु, तुम्हारा अंजन
चूम सुलाता होगा तुमको जो तड़पाता मुझे रात भर
इसी सुविस्तृत जग के अंदर
किसी कक्ष में सोयी होगी, प्रेयसि ! तुम भी श्रम से थककर
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