anbindhe moti

करुणा-घन बरसे
जंगम, जीव ज्वलित धरती के सुखी हुए, हरसे

भारी हिम-सा शोक धुल गया जन-जन-मन पर से
लघु खग, कीट, किरीट-इंद्रधनु देख चले घर से
जीवन भर चातक जो स्वाति-कणों के हित तरसे
अभिनंदन प्रियतम का करने लगे एक स्वर से
आत्मा के आराध्य ! तुम्हींने तृषित प्राण परसे
बैठ गया था मैं तो कब का गिरने के डर से

करुणा-घन बरसे
जंगम, जीव ज्वलित धरती के सुखी हुए, हरसे

1945