anbindhe moti

कौन किसका प्रेम है पाता !

स्वार्थ ही बस ध्येय जिनका
सँग निभाकर चार दिन का
तितलियाँ उड़तीं, बहुत दिन
फूल ! निभता साथ किनका
प्रीति मुँहदेखी यहाँ की, स्वार्थ का नाता

आज जो हँस बोलती हैं
भाव के स्तर खोलती हैं
चपल संमुख से सुगंधित
बादलों -सी डोलती है
कल कहेगी, ‘कौन ! पहिचाना नहीं जाता!

प्रीति का अभिनय न टिकता
स्वप्न में क्‍या वास्तविकता
भग्न उर से अंत में बस
आह कढ़ती अश्रु-सिक्‍ता
सब गँवाकर मुग्ध यौवन बैठ पछताता
कौन किसका प्रेम है पाता !

1942