anbindhe moti

अमावस का दीया

अमावस का दीया
जलते ही जिया

आयी हिम-बयार
खाँच नंगी तलवार
काँप उठा लोहित दृग गगन बार-बार
विष को भी इसने सदा अमृत मान पिया

भग्न गेह, भग्न स्नेह
ताप-तप्त तुनुक देह
हिंस्र सैनिकों से फिरे
धूल बरसाते मेंह
लिप्सा के शत-शत प्रहार
अनाचार

निगल न पाया इसे क्रूर अंधकार
बारबार दूटी लौ जुड़ी बारबार
बीते दिन, मास यों ही वर्ष भी हजार
काल ने कटोरा मोतियो से भर लिया

ज्योति की शिखा
सभ्यता का प्रथम प्रकाश यहीं दिखा
दिन चढ़ता ही गया पूरब से पश्चिम को
मानव ने प्रथम मुक्ति-मंत्र यहीं लिखा
एक मात्र चिहन स्वाभिमान का, स्वतंत्रता का
शांति और प्रेम का प्रतीक
धीर, वीर, बाँका
तार-तार अंचल धरा की भग्न ममता का
इसकी प्रेम-किरणों ने सिया
अमावस का दीया
जलते ही जिया

1945