anbindhe moti
चुंबन, ये वसंत के फूल
अलको-बीच गुँथे इंदीवर
अधरों पर नर्गिस-दल सुंदर
बन गुलाब खिलते गालों पर
रहे चमेली की लड़ियों-से बाहु-वक्ष पर झूल
युग करतल में जवाकुसुमवत्
पगतल पर मधुकर-गुंजन-रत
हरसिँगार से झरते शत-शत
पथ में बिछे शिरीष, चूमते कोमल पग की धूल
तनु-वृंतों पर, रूपसि ! तेरे
सुरभित प्रेम-सुमन ये मेरे
खिलते निशि-दिन, साँझ-सवेरे
तेरा विरह-काल ही इनका पतझड़ है दुखमूल
चुंबन, ये वसंत के फूल