anbindhe moti

छवि के मुकुलित दृग खोलो
जग-सुषमा को जगा साथ में हाथ उठाकर तोलो

कमल-करों के अरुण छोर से तम-से केश सँजो लो
वसन सँभाल, शिथिल पलकें मल, निज में सुस्थित हो लो

साथ सहेली किरणें आयीं शय्या तक, हँस बोलो
मलयानिल-सी घर, आँगन में, हंस-सरनि ! मृदु डोलो

तारे खग बन चहक रहे हैं, दृग-तारों को खोलो
गुंजित मधुप, कमल-दल बिकसे, तनिक देख भी तो लो

छवि के मुकुलित दृग खोलो
जग सुषमा को जगा साथ में, हाथ उठाकर तोलो

1940