anbindhe moti

जब तक मन नहीं मिलता है
जब तक मन नहीं मिलता है

एक भी शाखा नहीं डोलती है
एक भी पत्ता नहीं हिलता है

कोयल की कूक थमी रहती है
धरती पर बर्फ जमी रहती है

एक भी फूल नहीं खिलता है
जब तक मन नहीं मिलता है

जब मन मिल जाता हे
पत्थर भी गुनगुना उठते हैं
मिट्टी में प्राण कसमसाता है
जुगनू सूरज से टकराते है
गदर्भ गीतकार बन जाते है

कौवा भी मालकोश गाता है
जब मन मिल जाता है।

1965