anbindhe moti

अलक मुख पर मेदुरा हुई
मेघ तुम्हारी छाया छूकर भू अंकुरा हुई

श्याम तमाल-कुंज तट-तट पर, तरु-तरु पर वक-श्रेणी
पात-पात प्रति इंद्रबधूटी, प्रति सर बना त्रिवेणी

झुक-झुक तरु-शाखा समीर से स्नानातुरा हुई

जल कणिका चातक के मुख में पड़ी स्वाति कहलायी
सीपी में मोती, विरहिन के दृग आँसू बन छायी

वसुधा पर गिर सुधा, सुमन-संपुट में सुरा हुई

अलक मुख पर मेदुरा हुई
मेघ ! तुम्हारी छाया छूकर भू अंकुरा हुई

1941