anbindhe moti

अविरल प्रिय का पंथ निरखती ऊँघ रही पलकें मदमाती

सेज बिछी चाँदनी रँगीली
झालर नम की नीली-नीली
रजत बेल-बूँटों-से सी फबते,
मेघ, नखत-पाँते चमकीली
टंकी हुई सलमे-सी किरणों की पच्चीकारी मन भाती

झरती है मघु-राशि सुनहरी
चूम रही शशि का मुख लहरी
‘फूलों को गलबहियाँ देकर,
प्रकृति नींद में सोई गहरी
निर्जन कुंजों में छाया-तरुणी सुहाग की रात मनाती

मलय-दूतिका बहती मंथर
फैला जुगनू के लघु-लघु पर
स्पंद-हीन तरु के नीड़ों में,
सोये खग-शावक अलसाकर
मरकत-शाखा पर बैठी चकवी, बिहाग की कड़ियाँ गाती

बीत चली है रजनी आधी
झिंगुर ने भी चुप्पी साधी
चित्रित युग पुतलियाँ,
प्रतीक्षा की निस्सीम डोर में बाँधी
जलती है नीरव कोने में कंपहीन दीपक की बाती
अविरल प्रिय का पंथ निरखती ऊँघ रहीं पलकें मदमाती

1940