anbindhe moti

आइना कहता है, ‘सुंदर हूँ

स्वर्ण-कपोल, अरुण रँग झलकें
स्मितिमय अधर, कमल-दल पलकें,
कुछ-कुछ घुँघराली हैं अलकें
उपन्यास के नायक-सा हँसमुख, गंभीर, मुखर हूँ

विद्युत मुख-द्युति-आभा उज्जवल
तनु शिरीष-पँखुरी-सा कोमल
करुणा-तरल नयन, मन निश्छल
दीप-शिखा सा दुबला-पतला, सुगठित, सौम्य, सुघर हूँ

सुरँग निखिल वय, वेश, वसन अति
नित नव छवि-विकास, कविता-रति
आकर्षण लगता अपने प्रति
वह कितना सुंदर होगा जिसकी मैं छाया भर हूँ

आइना कहता है, ‘सुंदर हूँ”

1942